लेखनी प्रतियोगिता -31-May-2022भूतिया आजादी एक्सप्रेस
सन 1949
अमृतसर
दिन _12 बजे
(अमित अपने मित्र दानिश को खत लिखता है,जो बंटवारे के बाद पाकिस्तान अपने परिवार के साथ चला गया था)
प्रिय मित्र दानिश,
तुम कैसे हो?,यकीन नहीं होता कि हमें वक्त की आंधी ने एक दूसरे से जुदा कर दिया।
धर्म ,मजहब क्या ईश्वर की देन थी ,जब तक अंग्रेजों ने हमारे दिल में एक दूसरे के प्रति नफरत के बीज नहीं डाले थे ,उससे पहले हमारे तीज,त्योहार सब एक साथ मनाए जाते थे।दिवाली , ईद,होली सब हम एक दूसरे के साथ न मनाए तो अधूरा होता था।
पता है ,होली के वक्त जब तुम अपनी खाला के पास चले गए थे ,तो मैंने होली नहीं मनाई थी।
कितने दूर हो गए हम,हमारे पिताजी और तुम्हारे अब्बू में जो प्यार था , अब एक दूसरे के लिए नफरत में बदल गया।
दोनों अपने अपने आवाम के रहनुमा बन गए।पर मां तुम्हारी अम्मी को याद करके बहुत रोती है।
हो सके तो एक बार अमृतसर आ जाओ।
तुम्हारा दोस्त
अमित
अमित का पत्र पढ़ दानिश की आंखों में आंसू आ जाते हैं।वह तुरंत ही अमित को खत लिखने बैठ जाता है।
प्रिय मित्र
अमित
अभी अभी डाकिया चचा ने तुम्हारा पत्र दिया।अम्मी की आंखों में भी पत्र पढ़कर आंसू आ गए।
ज्यादा क्या लिखूं,एक खुशखबरी है,मैंने भी मुस्लिम लीग पार्टी ज्वाइन कर ली है,और मेरा निकाह भी हो चुका है,नफीसा बेगम के साथ।
मैं जल्दी ही हिंदुस्तान तुमसे मिलने आऊंगा।
तुम्हारा अजीज
दानिश
राजनैतिक रसूख से दानिश ,हिंदुस्तान आता है,अमित ,और उसकी मां के लिए तोहफे भेजे थे दानिश की मां ने तोशे (जो सरहद की मुख्य मिठाई है ,और जल्दी खराब नहीं होती) भेजे थे।
दोनों दोस्त एक दूसरे को पहचान ही नहीं पा रहे थे,फिर भी ऐसे मिले जैसे कभी बिछड़े ही न हों।
यार ,दानिश तू तो बड़ा लंबा ,चौड़ा गबरू नौजवान हो गया,और ये दाढ़ी(हा हा, हा)_अमित को दानिश की टांग खींचने में बड़ा मजा आ रहा था।
दानिश_तू कौन सा कमजोर दिख रहा, मां तुमने इसे खिला पिला कर पहलवान बना दिया।इसकी जल्दी शादी करा दो,फिर मैं इसकी शादी में अम्मी और बेगम को लेकर आऊंगा।
हां कह तो रही हूं,पर सुनता कहां है,ये तो दिन रात पढ़ाई में ही डूबा रहता है।
दानिश तू ही समझा,तेरी बात शायद सुन ले,या कोई लड़की देखी हो तो वो भी बता दे,मुझसे अब काम नहीं होता_मां ने कहा।
अब मैं चली सोने ,मेरे घुटनों में दर्द हो रहा और मां उठकर चलने लगी।
अरे मां इतनी जल्दी अभी तो 10ही बजे हैं_दानिश ने कहा।
अमित _जाने दो ,यार ।
चलो बाहर घूम आते हैं।
दोनों बाहर निकल गए।बातों में पता ही नहीं चला वो बहुत दूर निकल आए।
अचानक बारिश शुरू हो गई।
अरे यार बारिश होने लगी ,आसपास तो कोई जगह ही नहीं है छुपने की_दानिश चिल्लाया।
तू भी यार, कोई नमक की बोरी है क्या??जो गल जाएगा,बगल में ही अटारी स्टेशन है,वहीं छुप जाएंगे_अमित ने कहा।
तो चल जल्दी भाग,ये रिमझिम बूंदें अब तेज होने लगी हैं।
और सच में थोड़ी देर में काले काले बादलों ने अपना विकराल रूप दिखाना शुरू कर दिया।
वे भाग कर स्टेशन पहुंच चुके थे। शेड में एक बेंच था,दोनों उसपर बैठ गए।
दानिश ने कहा _अमित याद है,हम बारिश में कागज की नाव बना ,पानी में चलाया करते थे।
हां दानिश ,तुम्हें वो बात याद है,जब हम दोनों स्कूल से लौट रहे थे,आम के बाग तक पहुंचे ही थे कि अचानक आंधी आने लगी और थोड़ी देर में मूसलाधार बारिश शुरू हो गई ।
हमने भीग भीग कर आम बीनना शुरू कर दिया,और उसे अपने कपड़े खोल कर झोले की तरह बना घर आए,और उसके बाद जो कुटाई हुई कि आज भी दाग पड़े हैं पीठ पर।
पूरे कपड़े आम के दाग से हमने बरबाद कर दिए थे,जुकाम अलग से।
हां यार अमित , मैं भी नहीं भुला हूं।
परसों मैं चला जाऊंगा ,बहुत सी यादें लेकर और दोनो रोने लगे।
गरजते बादल और चमकती बिजली में उन दोनों की सिसकियां खो गईं।
अचानक अंदर कमरे से स्टेशन मास्टर निकला ।
कौन हो तुमलोग?कहां जाना है ,10बजे के बाद यहां कोई ट्रेन नहीं आती ।
अरे सर हमलोग टहलने निकले थे ,बारिश शुरू हो गई तो यहां आकर शेड में छुप गए।बारिश बंद होते वापस घर चले जाएंगे_अमित ने कहा।
अच्छा!!(कुछ सोचते हुए)तुम्हें नहीं मालूम कि अभी एक ट्रेन आने वाली है _स्टेशन मास्टर ने कहा(उसके चेहरे पर खौफ ,और आश्चर्य था)
हमें क्या पता आपने ही तो अभी कहा था कि 10 बजे के बाद कोई ट्रेन नहीं आती ,और अभी आप ही कह रहे हो कि आती है_दानिश ने कहा।
क्या मजाक लगा रखा है,कृपा करके आप अंदर जाइए,हमें कहीं नहीं जाना ट्रेन पकड़ कर ।हमारे पास समय कम है ,और बातें ज्यादा,_खीझ कर अमित ने कहा।
स्टेशन मास्टर खड़ा रहा ,उसके बाद उसने घड़ी देखी ,11.45 हो रहे थे।
उसने कहा _तुमलोग अंदर चलो ,बारिश रुक जाए तो चले जाना ।अभी एक भूतिया ट्रेन आने वाली है ।
क्या???? भूतिया ट्रेन !!!दोनों जोर से चीखे।
हां,_स्टेशन मास्टर ने कहा।
नहीं!!ऐसा तो आजतक हमने नहीं सुना_अमित ने कहा।
तुमलोग अंदर आओ,बहस मत करो।इस समय जब ट्रेन आती है ,तो बहुत शोर शराबा मचता है,गलती से अगर कोई आदमी बाहर बैठा मिलता है ,तो वह फिर बचता नहीं।
दानिश और अमित डर गए,उनके अंदर जिज्ञासा ने भी जन्म ले लिया।
वे तीनों,अंदर स्टेशन मास्टर के कमरे में चले गए,अंदर की बत्ती बुझा दी गई।
12 बजते ही अचानक ट्रेन के आने की आवाज सुनाई पड़ी ,ट्रेन थोड़ी देर में आकर स्टेशन पर रुकी।
ये क्या ,? पूरी ट्रेन ठसाठस भरी हुई। उसमें से ट्रेन के उपर भी लोग लदे हुए थे।कुछ के हाथ गायब थे,कुछ के धड़।
कुछ लोग स्टेशन पर उतर आए ,हाथों में तलवार और चाकू लेकर आपस में हमला कर रहे थे।कोई चिल्ला रहा था ,बचाओ तो कोई दौड़ रहा था मारने को।
बड़ा डरावना दृश्य था।थोड़ी देर में सिग्नल हुआ और सारे लोग स्टेशन से गायब हो ट्रेन पर चढ़ गए,और ट्रेन चली गई।
दानिश और अमित इतना डर गए कि उनकी आवाज नहीं निकल रही थी ।स्टेशन मास्टर पानी लेकर आया,उसने दोनों को बारी बारी से पानी दिया।
थोड़ा चेतनता आई तो ,दोनों के पास एक ही सवाल था,स्टेशन मास्टर के लिए।
ये क्या था??? कौन थे ये लोग?
स्टेशन मास्टर ने लंबी श्वास छोड़ कहना शुरू किया।
ये देश की आजादी के बाद की कहानी है,जब पाकिस्तान में हिंदुओ को निकाला जा रहा था,भारत सरकार की तरफ से ट्रेन की व्यवस्था की गई,लेकिन इतनी नफरत ,इतनी घृणा दहशतगर्दों में भरी थी कि, जो लोग ट्रेन से हिंदुस्तान लौट रहे थे , उनकी बहु,बेटियों के साथ बुरा सलूक ,और पुरुषों को इसी ट्रेन में मौत के घाट उतार दिया गया था। तब से इस ट्रेन में वही सब होता है ,जो नवंबर 1947 में हुआ था।सब भूत बनकर इसी ट्रेन में रह गए ,उन्हें मुक्ति नहीं मिली।
मत पूछो कितना भयंकर वाक्या था ।
अमित ने कहा _हां ,हमारी राजनीतिक पहुंच थी ,इसलिए हमें पहले से ही सतर्क कर दिया गया था,और हम पहले ही आ गए थे।इसलिए शायद जिंदा हैं।
दानिश ने पूछा_सर हर रात ही ऐसा होता है क्या?
स्टेशन मास्टर _हां ,ये दृश्य में हर रात ही देखता हूं,मैंने कई बार यहां से ट्रांसफर के लिए आवेदन दिया ,लेकिन कोई इस जगह आना नहीं चाहता इसलिए मेरा ट्रांसफर नहीं हुआ।
बारिश थम चुकी थी,लेकिन घर जाने की अब हिम्मत उन दोनों में नहीं थी ।
उन्होंने स्टेशन मास्टर से रुकने की इजाजत मांगी ,जो उसने सहर्ष स्वीकार कर लिया।
उसने उनके रहने की व्यवस्था कर दी।
दोनों सोचने लगे , कि सत्ता,पैसा,राजनीति के कारण लोग ,किसी भी रिश्ते,राष्ट्र सब भूल जाते हैं।क्या मिला इतने मासूम लोगों का कत्लेआम कर ।
क्यों नेता कौम को अमन चैन से जीने नहीं देते।आपस में एक दूसरे को लड़ा राजनीतिक रोटियां सेंकते हैं।
यही सोचते सोचते ,दोनों की आंख लग गई।
सुबह हुई तो स्टेशन मास्टर ने जगाया ,वो घर जा रहे थे।
दोनों जल्दी जल्दी घर पहुंचे,वहां ,अमित के माता पिता परेशान थे,रात भर सोए नहीं थे।
दोनों ने आप बीती सुनाई ।अमित के पिता भी भावुक हो गए,उन्होंने कहा हमने बहुत कुछ खोया है।
आज भी वो दुश्मनी की बर्फ ज्यों की त्यों है।
हमें अपने बुद्धि ,विवेक से इस बर्फ को पिघलाना होगा।
अगले दिन दानिश चला गया।बहुत सी खट्टी मीठी,यादें लेकर।
समाप्त
रचना पूर्णतः काल्पनिक है।
स्वरचित _संगीता
Shrishti pandey
01-Jun-2022 08:59 PM
Nice
Reply
Rajeev pandey
01-Jun-2022 09:42 AM
Nice
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Sangeeta singh
01-Jun-2022 09:46 AM
🙏
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Punam verma
01-Jun-2022 09:11 AM
Very nice
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